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डा.वेदप्रताप वैदिक को केवल भारत के वरिष्ठ
पत्रकार के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। उनकी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति
विषय पर गहरी पैठ भी है। अफगानिस्तान के साथ सोवियत संघ और अमेरिका
तुलनात्मक अध्ययन विषय पर जेएनयू से शोध उपाधि प्राप्त, अंतर्राष्ट्रीय
राजनीति पर कई पुस्तकों का लेखक, विभिन्न देशों के विश्वविद्यालयों में
विजिटिंग प्रोफेसर, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बार सम्मानित हो चुका
राजनीतिक चिंतक यदि अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान व्यक्तिगत रूप से किसी
घोषित आतंकवादी से मुलाकात करता है तो हंगामा क्यों?
उन्होंने न तो भारत सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर उनसे मुलाकात की और ना
ही वह किसी सरकारी संगठन से जुड़े हैं। वह किसी राजनीतिक दल से भी नहीं
जुड़े हैं। भारत सरकार ने भी स्पष्ट कर दिया कि यह मुलाकात व्यक्तिगत है और
उसका भारत सरकार से कोई संबंध नहीं है। तो फिर संसद में विपक्षी दलों
द्वारा इसे तूल दिया जाना समझ से परे है। दो जुलाई को हुई भेंट का सोशल
साइट्स पर खुलासा होने पर इलेक्ट्रानिक मीडिया ने अपने स्वभाव के अनुरूप एक
सनसनी के रूप में इसे पेश किया। विपक्षी दलों ने भी इस सुनहरे मौके का
फायदा उठाते हुए संसद के दोनों सदनों में हंगामा बरपाना अपना धर्म समझा।
कश्मीर के मुद्दे पर पाक न्यूज चैनल पर दिए गए इंटरव्यू की विभिन्न न्यूज
चैनलों ने फुटेज दिखा कर जिस तरह का वातावरण निर्मित किया गया वह भी ‘सबसे
बेहतर हमÓ और टीआरपी बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा ही कही जाएगी। वहीं यह एक
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ की निजी राय हो सकती है भारत सरकार की
नहीं। जरूरी नहीं उनके इस विचार से दोनों देश सहमत हों। मेरा मानना है कि
डा. वैदिक के खिलाफ देशभर में हंगामा करने, उन्हें राष्ट्रद्रोही के रूप
में पेश करने और उनके खिलाफ मुकद्में करने से बेहतर मांग की जाती कि डा.
वैैदिक इस मुलाकात व इंटरव्यू का पूरा विवरण सार्वजनिक करें, जिससे
वास्तविक स्थिति स्पष्ट हो सके। हालांकि डा. वैदिक ने अपने फेसबुक एकाउंट
पर 23 जुलाई को ‘कश्मीर पर मेरे कहे को पहले समझें तो सहीÓ पोस्ट कर स्थिति
स्पष्ट की है। इसे पढ़कर हो सकता है कि कुछ भ्रांतियां दूर हो जाएं और कुछ
ऐसे चेहरे बेनकाब हो जाएं जिनका मकसद सिर्फ विरोध करना है और सुर्खियों
में बने रहना है।
डा. मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद- 244001
(उत्तर प्रदेश)
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