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1857 की क्रांति में मुरादाबाद की भूमिका

परंपरा
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मेरठ से धधकी क्रांति की ज्वाला 15 मई 1857 को मुरादाबाद तक पहुंच चुकी थी । कुछ क्रांतिकारी सैनिक मेरठ से मुरादाबाद की ओर बढ़ते हुए गांगन नदी तक पहुंच गए थे। मुरादाबाद में अंग्रेज सेना भी पूरी तरह तैयार थी। इसकी सूचना मिलते ही तुरंत जेसी विल्सन ,डा.केंनन सेना सहित गांगन नदी पर पहुंच गए । वहां क्रांतिकारियों से अंग्रेज सेना की खुल कर लड़ाई हुई । एक क्रांतिकारी मारा गया ,आठ बंदी बना लिए गए। कई क्रांतिकारी स्थानीय गूजरों की सहायता से बच निकल भागे । उनके पास मुजफ्फरनगर के सरकारी खजाने से लूटा गया काफी रुपया भी था। मिस्टर विल्सन ने हाथियों पर लदवाकर वह रुपया मिस्टर सेंडर्स के साथ मेरठ भिजवा दिया। हार का मुंह देखने के बाद भी क्रांतिकारियों के हौंसले कम नहीं हुए। 19 मई को पांच क्रांतिकारी सैनिक मुरादाबाद छावनी में घुस गए लेकिन वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सके। इनमें से एक को गोली मार दी गई,तीन पकड़े गए तथा एक भाग गया। मरने वाला यहां अंग्रेज सेना में शामिल संसार सिंह का साला था। इस घटना से उसके अंदर भी विद्रोह की ज्वाला धधकने लगी और उसने तमाम सैनिकों को एकत्र कर जेल पर हमला बोल दिया। यह देख जेल गार्ड ने समस्त बंदियों को छोड़ दिया। इस सफलता के बाद यहां क्रांति की आग चारों ओर फैल गई। 31 मई को रामगंगा नदी के किनारे अंग्रेजी सेना और क्रांतिकारियों में कई घंटे युद्ध हुआ । इसमें कई अंग्रेज सैनिकों को क्रांतिकारियों ने मार गिराया वहीं इस युद्ध का नेतृत्व कर रहे मौलवी मन्नू भी अंग्रेजों की गोली से शहीद हो गए। इसके बाद मुरादाबाद में क्रांति का संचालन मज्जू खां के हाथ में आ गया। दो जून को मज्जू खां के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाना लूट लिया और अपने आपको मुरादाबाद का शासक घोषित कर दिया। अंग्रेजों ने मुरादाबाद छोड़ दिया लेकिन जाते -जाते वह नवाब रामपुर से कह गए कि अंग्रेजों की अनुपस्थिति में वह मुरादाबाद अपने अधिकार में ले लें । रामपुर नवाब ने चार जून को अपने चचा अब्दुल वली खां को सेना सहित मुरादाबाद पर कब्जा करने के लिए भेजा पर वह सफल न हो सका। उनकी सेना में भी विद्रोह हो गया। बाद में 23 जून को रामपुर नवाब ने पुन: दो हजार सैनिक भेज कर मुरादाबाद पर अपना अधिकार कर लिया । कुछ दिनों के बाद मज्जू खां और रामपुर के सैनिकों में लौकी (कद्दू ) खरीदने को लेकर झगड़ा हो गया। इसमें रामपुर के चालीस सैनिक मारे गए। बाद में मज्जू खां और रामपुर नवाब में संधि हो गई।
सन्1858 में 25 अप्रैल को बिगे्रडियर जोंस सेना सहित मुरादबाद पहुंच गया और क्रांति का दमन करना शुरू कर दिया। 30 अप्रैल को जिला पुन: अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। इसके बाद अंग्रेजों ने क्रूरतापूर्वक क्रांति का दमन किया। क्रांतिकारियों को को पकड़ कर फांसी पर लटका दिया गया । नवाब मज्जू खां को भी गोली मार दी गई और उनकी लाश को हाथी के पैरों से बांधकर शहर में घुमा कर चूने की भट्टी में डाल दिया गया। वहीं क्रांति के दमन में जिन लोगों ने अंग्रेजों का साथ दिया उन्हें जागीरें ,पद व पुरुस्कार प्रदान किए गए।

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