परंपरा
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सुन रहे यह गैस आदमखोर है ।
हर तरफ बस चीख, दहशत शोर है ।।
बढ रहे हैं जिस सदी की ओर हम ।
यह उसी की चमचमाती भोर है ।।
मौत से क्यों इस तरह घबरा रहे ।
जिंदगी तो एक रेशम डोर है ।।
इस तरह मातम मनाते क्यों भला ।
देश तो अपना प्रगति की ओर है ।।
मत कहो यह गैस जहरीली बहुत ।
आदमी ही आजकल कमजोर है ।।
डा. मनोज रस्तोगी
मुरादाबाद
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