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भेड़ियों के सम्मुख टिका दिया माथ

परंपरा
परंपरा
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रेल की पटरियों सा
हो गया जीवन

कुछ पाने के लिए
हम भटकते रहे
अर्थ लाभ के लिए
बर्फ से गलते रहे

सुख की कामना में
जर्जर हो गया तन

स्वाभिमान भी रख
गिरवीं नागोँ के हाथ
भेड़ियों के सम्मुख
टिका दिया माथ

इस तरह होता रहा
अपना रोज चीरहरन
रेल की पटरियों सा
हो गया जीवन

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