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धार्मिक और सांस्कृतिक नव जागरण के अग्रदूत महर्षि दयानन्द सरस्वती का दीपावली के दिन निर्वाण दिवस है। महर्षि ने मुरादाबाद में भी आर्य समाज की स्थापना की थी। मुरादाबाद प्रवास के दौरान उन्होंने न केवल अपनी ओजस्वी वाणी से वैदिक धर्म का प्रचार किया बल्कि पादरी पार्कर (इन्हीं के नाम पर यहां पार्कर इंटर कालेज है)से कई दिन तक लिखित शास्त्रार्थ भी किया था। यही नहीं सत्यार्थ प्रकाश के लेखन के प्रेरणा स्त्रोत भी मुरादाबाद के राजा जयकिशन दास हैं। उन्हीं की सहायता से इस अद्वितीय ग्रंथ का प्रथम बार प्रकाशन हुआ।
महर्षि दयानन्द सरस्वती मुरादाबाद में दो बार आये थे। दोनों ही बार वह यहां राजा जय किशन दास सीएसआई की कोठी में ठहरे और धर्म प्रचार किया। पहली बार महर्षि सन् 1876 में मुरादाबाद आये और राजा साहब की कोठी के चबूतरे पर कई दिन व्याख्यान दिये। इसी दौरान रैबरेंड डब्ल्यू पार्कर साहब से लगभग पंद्रह दिन महर्षि दयानंद जी का लिखित शास्त्रार्थ हुआ था। शास्त्रार्थ के अंतिम दिन सृष्टि कब उत्पन्न हुई पर विशद् चर्चा हुई। उन्होंने उस समय यहां आर्य समाज की शाखा भी स्थापित की थी ,परन्तु उनके चले जाने के बाद यह समाप्त हो गयी थी। महर्षि दयानन्द जब दूसरी बार 3 जुलाई सन् 1879 को मुरादाबाद आये तो उन्होंने पुन: राजा जय किशन दास की कोठी पर ही 20 जुलाई 1879 को आर्य समाज की स्थापना की और उसके प्रधान – मुंशी इंद्रमणि ,मंत्री – कुंवर परमानंद और ठाकुर शंकर ंिसंह को नियुक्त किया। वर्तमान में यह आर्य समाज, मंडी बांस के रुप में संचालित हो रही है। इस बार भी स्वामी जी ने कई व्याख्यान दिये। एक दिन मिस्टर स्पोडिंग साहब कलेक्टर के अनुरोध पर उन्होंने मुरादाबाद छावनी की पहली कोठी में राजनीति पर व्याख्यान दिया। उनकी ओजस्वी वाणी और विद्वता से प्रभावित हो स्पोडिंग ने उनकी प्रशंसा की। इन्हीं दिनों प्रवास के दौरान स्वामी जी और मुंशी इंद्रमणि के बीच अभिवादन को लेकर काफी चर्चा हुई। आर्य ग्रंथों और वेदों का उदाहरण देते हुए स्वामी जी ने नमस्ते अभिवादन को ही उचित ठहराया। राजा साहब की प्रेरणा से ही स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश की रचना आरंभ की। राजा साहब ने ही अनेक ग्रन्थ जर्मनी से मंगा कर स्वामी जी को दिये यहीं नहीं सत्यार्थ प्रकाश का प्रथम प्रकाशन भी उन्होंने स्टार प्रेस काशी में कराया। सत्यार्थ प्रकाश के चौदहवें समुल्लास के संशोधन का गौरव भी मुरादाबाद के मुंशी इंद्रमणि को प्राप्त होता है। इस तरह देखा जाये तो आर्य संस्कृति के प्रचार – प्रसार और वेद की ज्योति जलाने में मुरादाबाद नगर का भी अद्वितीय योगदान रहा है।
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