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याद रहेंगे गांधी जी
मुरादाबाद में ही मिला था असहयोग अंादोलन को अंतिम रूप
आजादी के आंदोलनों में मुरादाबाद के कदम भी हमेशा आगे ही रहे हैं। कई दीवानों ने जहां देश को आजादी दिलवाने में अपने प्राणों की आहुति दी तो तमाम लोगों ने जेल की काल कोठरी में यातनाएं भी सहीं । शायद , कम लोग ही जानते होंगे कि असहयोग आंदोलन की योजना को को अंतिम रूप मुरादाबाद में ही दिया गया ।
जी हां,असहयोग आंदोलन की योजना पर पुनर्विचार और मूर्त रूप देने के लिए मुरादाबाद में कांग्रेस का संयुक्त प्रांतीय सम्मेलन नौ से ग्यारह अक्टूबर १९२० को आयोजित किया गया था। उस समय इस आयोजन को लेकर पूरे मुरादाबाद में अपूर्व उत्साह था।
नौ अक्टूबर की सुबह अली बंधुओं(शौकत अली व मोहम्मद अली ) के साथ महात्मा गांधी मुरादाबाद आ गये थे। उनके आगमन की सूचना मिलते ही नागरिक उत्साह से भर उठे और महात्मा गांधी व अली बंधुओं को एक जुलूस के रूप में शहर के मुख्य मार्गो पर घुमाया गया। मार्ग झंडियों, बैनरों और स्वागत द्वारों से सजे हुए थे। मार्ग के दोनों ओर खड़ा जनसमूह पुष्पवर्षा कर अपने प्रिय नेताओं का स्वागत कर रहा था। सम्पूर्ण वातावरण महात्मा गांधी की जय से गूंज रहा था। दोपहर बाद नगर के महाराजा थिएटर(वर्तमान में सरोज टाकीज)में बाबू भगवान दास की अध्यक्षता में सम्मेलन प्रारंभ हुआ। पहले ही दिन सम्मेलन में कस्तूरबा गांधी,हकीम अजमत अली,स्वामी श्रद्धानंद,पं.जवाहरलाल नेहरू,आदि नेता पहुंच चुके थे। इस दिन बाबू भगवान दास ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कलकत्ता(अब कोलकाता)में महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तुत असहयोग आंदोलन की योजना पर मतभेदों और कांग्रेस से अलग हो गये उदारवादी नेताओं की चर्चा की। अगले दिन यानी दस अक्टूबर को इस पर विशद् चर्चा हुई। इस दिन सम्मेलन में पं.मदन मोहन मालवीय,पं.मोती लाल नेहरू आदि कांग्रेसी नेता भी आ गये थे। चर्चा के दौरान फिर तमाम मतभेद खुल कर सामने आये। इसी बीच स्वागत मंत्री बाबू बांके बिहारी वर्मा ने जब वकीलों द्वारा प्रेक्टिस स्थगित करने ,सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों से विद्यार्थियों को हटाने और काउंसिलों व विदेशी सामान के बहिष्कार को फिलहाल स्थगित रखने का संशोधन प्रस्तुत किया तो पूरे सदन में हंगामा होने लगा। बमुश्किल शांति होने पर कार्यवाही शुरू हो सकी। स्वामी श्रद्धानंद,पं. मोतीलाल नेहरू,महात्मा गांधी आदि ने संशोधन का पुरजोर विरोध किया लेकिन पं.मदन मोहन मालवीय खुलकर पक्ष में बोले। बाद में संशोधन का प्रस्ताव बहुमत से खारिज और मूल प्रस्ताव पूर्ण बहुमत से पारित हो गया। सम्मेलन के अंतिम दिन ग्यारह अक्टूबर को समापन सत्र में महात्मा गांधी ने कहा-बहुत गंभीर चिंतन के बाद भी मैं यही मानता हूं कि देश की स्वतंत्रता का एकमात्र मार्ग असहयोग ही है। कार्यकर्ताओं का आह्वान करते उनका कहना था कि भारत को आजादी दिलाने को दो बातें आवश्यक हैं। पहली तो यह कि हिंदुओं और मुसलमानों में एकता हो। दूसरी शर्त है असहयोग आंदोलन को सफल बनाना। उन्होंने कहा कि सरकार खिलाफत के संबंध में अपने वादों से मुकर गयी है। उसने पंजाब पर कहर बरपा किया है। ऐसी सरकार से संबंध बनाये रखना,इसकी विधान परिषदों में बैठना या अपने बच्चों को इसके स्कूलों में भेजना हराम है।
छह अगस्त १९२१ में महात्मा गांधी फिर मुरादाबाद आये और यहां तीन सभाओं में भाषण दिया। इसके बाद गांधी जी का प्रवास यहां ११ व १२ अक्टूबर १९२९ को भी रहा। यहां उन्होंने अमरोहा गेट स्थित बृज रतन हिन्दू पुस्तकालय के नवीन भवन का उद्घाटन किया था। वह ११ अक्टूबर की रात नौ बजे शाहजहांपुर से यहां पहुंचे थे और बारह अक्टूबर को उद्घाटन के बाद यहां से धामपुर(बिजनौर) के लिए रवाना हो गए थे।
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